POK क्यों बना हमेशा का विवाद? जानिए 1947 से अब तक की पूरी Timeline

POK क्यों बना हमेशा का विवाद? जानिए 1947 से अब तक की पूरी Timeline

“POK kya hai bhaiya?” – अगर आपने कभी किसी न्यूज डिबेट या सोशल मीडिया चर्चा को ध्यान से सुना हो, तो ये सवाल ज़रूर आपके कानों में पड़ा होगा। POK यानी पाक अधिकृत कश्मीर (Pakistan Occupied Kashmir) एक ऐसा नाम है जो भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में दशकों से विवाद और तनाव का कारण बना हुआ है।

हर बार जब भारत-पाक के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती है, तो POK की चर्चा फिर से गर्म हो जाती है। पर क्या आपने कभी सोचा है कि यह विवाद आखिर शुरू कहां से हुआ? कब-कब भारत और पाकिस्तान इसके कारण आमने-सामने आए? और क्या वाकई कभी इस मुद्दे का हल निकल पाएगा?


इस लेख का उद्देश्य है 1947 से लेकर अब तक की पूरी टाइमलाइन को आपके सामने लाना – ताकि आप जान सकें कि POK कैसे बना एक स्थायी विवाद, और इसका इतिहास कितना जटिल और गहराई से जुड़ा हुआ है भारत-पाक संबंधों से।


🔹 1947 – भारत-पाक विभाजन: जब विवाद की नींव रखी गई

1947 में जब भारत का विभाजन हुआ, तो ब्रिटिश भारत के 562 रियासतों को यह अधिकार मिला कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल हो सकते हैं। लेकिन कश्मीर की स्थिति जटिल थी – वह एक मुस्लिम बहुल राज्य था, पर उसके शासक महाराजा हरि सिंह हिंदू थे।

कश्मीर के महाराजा का निर्णय और पाकिस्तान की नाखुशी

महाराजा हरि सिंह शुरू में किसी एक देश में शामिल नहीं होना चाहते थे। लेकिन अक्टूबर 1947 में, पाकिस्तान समर्थित कबायली लड़ाके कश्मीर में घुस आए और हिंसा फैलाने लगे। खुद को बचाने के लिए महाराजा ने भारत से मदद मांगी, और 26 अक्टूबर 1947 को भारत में विलय के दस्तावेज (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर कर दिए।

यहीं से POK की कहानी की शुरुआत हुई। पाकिस्तान ने इस निर्णय को कभी स्वीकार नहीं किया और कश्मीर को विवादित क्षेत्र घोषित कर दिया।


🔹 1948 – पहला भारत-पाक युद्ध और POK का जन्म

पहला युद्ध: कब और क्यों हुआ?

1947 के अंत से लेकर 1948 तक भारत और पाकिस्तान के बीच पहला युद्ध हुआ, जिसे हम 1947-48 का भारत-पाक युद्ध कहते हैं। पाकिस्तान ने कश्मीर के हिस्से पर कब्जा करने की कोशिश की, जबकि भारत ने वहां अपनी सेना भेजकर जवाब दिया।

युद्धविराम और लाइन ऑफ कंट्रोल की शुरुआत

जनवरी 1949 में संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद युद्धविराम लागू हुआ। इस युद्धविराम के बाद जो क्षेत्र पाकिस्तान के नियंत्रण में रहा, उसे हम आज Pakistan Occupied Kashmir (POK) के नाम से जानते हैं। भारत ने इसे हमेशा अवैध कब्जा माना है।


🔹 1965, 1971 और कारगिल युद्ध: POK की भूमिका

1965 का युद्ध: ऑपरेशन जिब्राल्टर की विफलता

1965 में पाकिस्तान ने कश्मीर में घुसपैठ करके वहां के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिश की। इस रणनीति को ऑपरेशन जिब्राल्टर कहा गया। लेकिन भारत ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया और युद्ध छिड़ गया।

POK एक बार फिर पाकिस्तान के लिए लॉन्चपैड बना। अंत में ताशकंद समझौते के बाद युद्ध समाप्त हुआ।

1971 का युद्ध और LOC की स्थापना

1971 में भारत-पाक के बीच युद्ध का मुख्य कारण बांग्लादेश की आज़ादी थी, लेकिन इसके परिणामस्वरूप 1972 में शिमला समझौता हुआ, जिसमें पहली बार लाइन ऑफ कंट्रोल (LOC) को औपचारिक रूप से स्वीकार किया गया।

1999 का कारगिल युद्ध

पाकिस्तान की सेना और घुसपैठिए POK से होकर कारगिल में घुस आए और रणनीतिक चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारत ने सफलतापूर्वक उन्हें खदेड़ दिया। POK एक बार फिर विवाद और संघर्ष का केंद्र बन गया।


🔹 1990 के बाद – आतंकवाद का केंद्र बना P O K

1990 के दशक में कश्मीर घाटी में आतंकवाद की शुरुआत हुई, जिसका मुख्य आधार बना P OK। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI ने वहां आतंकवादी प्रशिक्षण शिविर शुरू किए।

P OK में आतंकी ट्रेनिंग कैंप

P OK के मुझफ्फराबाद और बालाकोट जैसे इलाकों में कई आतंकी संगठनों – जैसे जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा – ने प्रशिक्षण केंद्र खोले। यहां से घुसपैठिए भारत में भेजे जाने लगे।

भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर चुनौती

इन गतिविधियों के कारण भारतीय सेना और सुरक्षा एजेंसियों को भारी नुकसान उठाना पड़ा। P OK एक "सेफ हेवन" बन गया आतंकियों के लिए, जिससे भारत की आंतरिक सुरक्षा खतरे में पड़ गई।


🔹 2019 – धारा 370 हटाने का असर और P O K पर नई बहस

5 अगस्त 2019: ऐतिहासिक फैसला

भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 को हटा कर जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर दिया और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया – जम्मू-कश्मीर और लद्दाख।

भारत की आक्रामक विदेश नीति

इस फैसले के बाद भारत ने POK को लेकर कड़ा रुख अपनाया। संसद में कई बार कहा गया कि P OK भी भारत का हिस्सा है और उसे एक दिन वापस लाया जाएगा।

वैश्विक मंच पर POK की गूंज

भारत की इस नीति ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचाई। कई देशों ने भारत की नई नीति को समझने की कोशिश की, जबकि पाकिस्तान ने इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की – लेकिन उसे खास समर्थन नहीं मिला।


🔹 POK पर भारत की वर्तमान नीति

राजनीतिक और सैन्य बयान

भारत के कई नेताओं और सैन्य अधिकारियों ने कहा है कि "अगर हमें आदेश मिला तो हम POK को वापस लाने के लिए तैयार हैं।" यह दिखाता है कि POK अब केवल एक राजनैतिक मुद्दा नहीं रहा, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और आत्मसम्मान का सवाल बन चुका है।

कूटनीतिक अभियान

भारत ने अब POK को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की पोल खोलना शुरू कर दी है। POK में मानवाधिकार उल्लंघन, ग़ैर-कानूनी कब्ज़ा, और आतंकी गतिविधियों को उजागर किया जा रहा है।


🔹 चीन की भूमिका और CPEC

POK विवाद में एक नया मोड़ आया जब चीन ने CPEC (China Pakistan Economic Corridor) नामक परियोजना के तहत POK के गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में भारी निवेश करना शुरू किया।

भारत की आपत्ति

भारत ने इसे साफ शब्दों में अवैध परियोजना कहा है क्योंकि यह भारतीय क्षेत्र में बिना अनुमति के किया जा रहा निर्माण है।


🔹 POK में हो रहे राजनीतिक बदलाव

हाल के वर्षों में POK के स्थानीय नागरिकों में असंतोष बढ़ा है। वहां के लोग पाकिस्तान सरकार से नाराज़ हैं – बिजली, पानी और रोजगार जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए वे विरोध कर रहे हैं।

भारत के लिए अवसर

यह असंतोष भारत के लिए एक कूटनीतिक अवसर बन सकता है, ताकि दुनिया को दिखाया जा सके कि POK के लोग भी पाकिस्तान से खुश नहीं हैं।


🔹 निष्कर्ष – “POK kya hai bhaiya” का जवाब अब आपके पास है

अब जब आपने 1947 से लेकर आज तक की पूरी कहानी पढ़ ली है, तो अगली बार जब कोई आपसे पूछे – “POK क्या है भैया?”, तो आप पूरे आत्मविश्वास से बता सकते हैं कि:

  • यह एक ऐतिहासिक विवाद है जिसकी शुरुआत भारत-पाक विभाजन से हुई।

  • यह क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है, जिसे पाकिस्तान ने जबरन कब्जे में ले रखा है।

  • POK न सिर्फ सैन्य और रणनीतिक दृष्टि से, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक और कूटनीतिक रूप से भी एक गंभीर मुद्दा है।

  • और आज, जब भारत अपनी विदेश नीति में आक्रामक और आत्मविश्वासी बना है, तब यह उम्मीद की जा सकती है कि POK का समाधान आने वाले समय में निकलेगा।


भारत का मानना है – “POK हमारा था, है और रहेगा।” और जब तक यह विश्वास ज़िंदा है, तब तक ये विवाद भी चर्चा में बना रहेगा – लेकिन अब एक सशक्त भारत की आवाज़ के साथ।

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